Sunday 18 June 2017

सरल मार्ग vs कठिन मार्ग

   ईश्वर/पैगम्बर/अवतारों पर आस्था रखने की एक वजह यह भी है कि अधिकतर लोग अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करना चाहते, वो केवल अनुसरण करना चाहते हैं। शायद वो अपनी बौद्धिक क्षमताओं पर पर्याप्त विश्वास नहीं करते। क्योंकि अपनी सीमित बुद्धि के कारण वो बहुत से विषयों और घटनाओं को समझने में खुद को असमर्थ पाते हैं। वैसे कई बार विषय इतना कठिन भी नहीं होता लेकिन या तो उनकी समझने में रूचि ही नहीं होती या फिर समझने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं करना चाहते। वो हमेशा सरल मार्ग खोजते हैं। वो ये मान लेते हैं कि उनमें घटनाओं और विषयों को समझने की पर्याप्त समझ ही नहीं है, इसलिए व्यर्थ में दिमाग को कष्ट देने से बेहतर है कि किसी दिव्य व्यक्तित्व का अनुसरण किया जाए जिसकी बौद्धिक क्षमताओं पर कोई प्रश्न न उठा सके, जिसकी हर बात को निर्विवाद रूप से सच माना जा सके और जिस पर आंख मूंदकर भरोसा किया जा सके। इसके लिए ईश्वर अथवा ईश्वर के दूतों और अवतारों से बेहतर क्या हो सकता है।

  प्राचीन समय से ही चतुर लोग इस बात को बखूबी समझते थे, इसीलिए उन्होंने अपनी बातों को मनवाने के लिए ईश्वर का खूब प्रयोग किया। यदि किसी बात को ईश्वर का वचन कहकर प्रचारित किया जाए तो लोगों को न केवल उसको मानने के लिए आसानी से राजी किया जा सकता है बल्कि उस पर उठने वाली सभी आपत्तियों को स्वतः ही ख़ारिज किया जा सकता है। फिर भले ही वो बात कितनी ही गलत प्रतीत हो पर चूँकि उसे ईश्वर ने कहा है तो उस पर कोई प्रश्न उठाया ही नहीं जा सकता। फिर इसके साथ ही स्वर्ग का लालच और नर्क का भय भी जोड़ दिया जाता है ताकि उसका पालन सुनिश्चित किया जा सके। फिर भी यदि कोई अड़ियल उसको मानने से इनकार करे तो उसपर ईश्वर की अवेहलना और ईशनिंदा का आरोप लगाकर प्रताड़ित करने का विकल्प भी रहता था।

  प्राचीन भारत के राजवंश खुद को किसी न किसी देवता का वंशज बताते थे ताकि जनता में उनके प्रति विश्वास बना रहे और उनकी कही हर बात क़ानून बन जाए। इसी प्रकार मनुस्मृति, कुरान, बाइबिल इत्यादि की रचना के पीछे भी यही उद्देश्य था कि ईश्वर रचित संविधान का हवाला देकर लोगों को संगठित कर एक क़ानून के तले लाया जा सके।

  आश्चर्य है आज 21वीं सदी में भी विज्ञान के इतने विकास के बाद भी दुनिया की एक बड़ी जनसंख्या चतुर लोगों द्वारा रचे इस जाल में फंसी हुयी है और वो खुद को इस भ्रम जाल से मुक्त करने में असमर्थ पाती है तो इसकी एक ही वजह है कि अधिकांश लोग खुद की कोई सोच नहीं रखते, न ही वो अपनी बुद्धि को कष्ट देना चाहते हैं, न ही उनकी रूचि खुद के प्रयास से कुछ खोजने या जानने में है। वो हमेशा सरल मार्ग खोजते हैं और अनुसरण करने से सरल भला क्या हो सकता है।