Saturday 12 August 2017

मानव की विकास यात्रा


प्राचीन काल से ही मनुष्य के मन में मानव उत्पत्ति के सम्बन्ध में गहन जिज्ञासा रही है। उस समय में चूँकि विज्ञान इतना विकसित नहीं था की साक्ष्यों की खोज बीन कर कुछ निष्कर्ष निकाल सके, तो उस समय के विचारकों ने मानव उत्पत्ति के सम्बन्ध में तरह तरह की कल्पनाएँ कीं। लगभग सभी ने मानव को ईश्वर द्वारा विशेष रूप से निर्मित सर्वश्रेष्ठ कृति की तरह प्रस्तुत किया। जिसका प्रमाण हमें प्राचीन धर्मग्रंथों में मिलता है। जैसे बाइबिल, कुरान, तौरात में प्रथम मानव आदम व हव्वा को माना गया है, जिनको ईश्वर ने विशेष रूप से निर्मित किया। वहीँ मनुस्मृति में प्रथम मानव मनु एवं शतरूपा को माना गया है। डार्विन ने जब पहली बार क्रमिक विकास का सिद्धांत प्रस्तुत किया तो सबसे बड़ा आधात इन प्राचीन मान्यताओं को ही पहुंचा। क्योंकि प्राचीन काल से लोग इन धार्मिक मान्यताओं को सत्य मानते आये थे, और उनके लिए ये स्वीकार करना बड़ा कठिन था कि मानव कोई ईश्वर द्वारा निर्मित विशेष कृति नहीं है बल्कि उसका विकास वानरों की एक प्राचीन शाखा से हुआ है। आज भी जबकि जीव विज्ञानियों ने जैव विकास और मानव उत्पत्ति के सम्बन्ध में तमाम साक्ष्य खोज लिए हैं फिर भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो कि अपनी धार्मिक मान्यताओं की खातिर वैज्ञानिक खोजों और उपलब्ध तमाम साक्ष्यों को तरह-तरह के कुतर्कों से नकारते रहते हैं। जबकि अपनी धार्मिक मान्यताओं के पक्ष में वे एक भी प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाते। तो आइये आज आपको मानव विकास की संक्षिप्त यात्रा पर ले चलते हैं।
     
प्रथम जीव से लेकर मानव तक जैव विकास का लम्बा इतिहास रहा है, जिसमें जीवों के वंश- वृक्ष में मानव सबसे उपरी टहनी पे लगा सर्व श्रेष्ठ फल है मानव के उद्विकास का अध्धयन विभिन्न शैल स्तरों से प्राप्त अस्थियों, जबड़ों, खोपड़ियों और दांतों के जीवाश्मों को सूत्रबद्ध करके किया गया है जिसकी रुपरेखा निम्न है

1. मानव के प्राम्भिक पूर्वज -- इन्हे गज श्रुज़ कहा गया है जिनकी उत्पत्ति 10 करोड़ वर्ष पूर्व क्रिटेशियस कल्प में हुई ये प्रथम स्तनधारी थे अर्थात ये दुनिया में मौजूद मानव समेत सभी स्तनधारी प्राणियों के वंशज थे।

2. मानव के प्रोसिमियन पूर्वज-- ये दो प्रकार के थे

1. वृक्षाश्रयी श्रुज --- आज से 6 करोड़ वर्ष पूर्व पैलीयोसिन कल्प में इन की उत्पत्ति हुई ये वृक्षों पर रहा करते थे

2. लीमर्स, लोरिस व टारसीयर्स-- वृक्षाश्रयी का उद्विकास 3 शाखाओं में बंट गया जिसमें टारसीयर्स सर्वाधिक विकसित प्रकार के थे ये काफी हद तक छोटे बन्दर से मिलते हुए थे

3. मानव के एन्थ्रोपोइड पूर्वज -- इसमें 3 वंश शामिल हैं ...बन्दर वंश , कपि वंश व मानव वंश

1. बन्दर वंश --आज से लगभग 4 करोड़ वर्ष पूर्व इओसीन युग के अंतिम चरण में दो भिन्न दिशाओं में उत्त्पत्ति हुई जिन्हें नई दुनिया (दक्षिणी व मध्य अमेरिका ) के बन्दर व पुरानी दुनिया( अफ्रीका व एशिया ) के आदि बन्दर कहा गया इनमे से आदिबन्दर के लक्षण कपि व मानव के लक्षणों से मेल खाते हैं, अत: इन्हें मानव की उदविकासीय शाखा के पूर्वज कहा गया इनका नाम ओलिगोपिथेकस कहा गया इसके जीवाश्म ओलिगोसीन युग की चट्टानों में प्राप्त हुए है

2. कपि वंश -- ओलिगोपिथेकस के जीवाश्म से पता चलता है कि कपि व मानव की वंश शाखा 3 करोड़ वर्ष पूर्व बंदरों की वंश शाखा से पृथक हुई और 2.5 करोड़ पुराने प्राप्त दो जीवाश्म प्रोप्लिओपिथेकस व एईजीपटोपिथेकस 'जिनके लक्षण कपि व मानव से अधिक मिलते हुए थे' को आदिकपी कहा गया माओसीन युग की 2 करोड़ तथा प्लिओसीन युग की 50 लाख वर्ष पूर्व की चट्टानों में ड्रायोपिथेकस व शिवेपिथेकस आदिकपियों के जीवाश्म भारत की शिवालिक पर्वत श्रेणी में प्राप्त हुए हैं जिनके हाथों, करोटि व मस्तिष्क के लक्षण बंदरों जैसे एवं चेहरे, जबड़ों व दांतों के लक्षण कपियों जैसे थे 1.2 करोड़ वर्ष पूर्व शिवेपिथेकस से मानव वंश का विकास हुआ

3. मानव वंश----मायोसीन युग के अंतिम चरण में उष्ण कटिबंधीय वनों का व्यापक विनाश हुआ और इनके स्थान पे घास के मैदानों का विकास हुआ जिससे आदि कपियों को स्थलीय जीवन अपनाना पड़ा व सर्वाहरी जीवन के अनुकूलन के उन्हें तेज़ दौड़ना व शिकार करना आवश्यक हो गया इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए आदि कपियों को सीधे खड़े होकर द्विपद चारी गमन अपनाना पड़ा और यही लक्षण आदि कपियों से आदि मानव पूर्वज के उदय का मूल आधार बना
आदि मानव पूर्वजों के प्राप्त जीवाश्म ..

1. रामापिथेकस व कीनियापिथेकस -- भारत की शिवालिक एवं अफ्रीका व चीन की चट्टानों में 1.2 से 1.4 करोड़ वर्ष पुराने ये जीवाश्म प्राप्त हुए हैं जिनमे मानव की भांति अर्धचंद्राकार दन्त रेखा, छोटे जबड़े व चेहरा अधिक सीधा एवं खड़ा हुआ है इन्हे मानव वंश का प्रथम पूर्वज कहा गया

2. आस्ट्रेलोपिथेकस -- दक्षिणी अफ्रीका में तवांग के निकट 32 से 36 लाख वर्ष पूर्व के जीवाश्म प्राप्त हुए जिनका दन्त विन्यास, शारीरिक कद तथा भiर वर्तमान मानव से काफी मिलता जुलता हुआ है ! रेमंड डार्ट ने इन्हे पहला आदि मानव कहा इन जीवाश्मों के साथ के साथ छड़ियों, पत्थरों व हड्डियों के ढेर भी प्राप्त हुए हैं जिस से प्रमाणित होता है कि ये इन वस्तुओं का हथियार के रूप में उपयोग करता था इसलिए इन्हे हथियार संग्राहक कहा गया है

3. पैरैन्थ्रोपस व ज़िन्ज़िन्थ्रोपस ---- अफ्रीका के जावा की चट्टानों में 18 लाख वर्ष पूर्व के जीवाश्म प्राप्त हुए ये पूर्वज भारी भरकम शरीर वाले थे जैसे की आज के गोरिल्ला हैं

4.लूसी ---इथियोपिया की चट्टानों में अमेरिका के डी. जोहन्सन को 30 लाख वर्ष पुराना आदि मानव का एक पूरा कंकाल प्राप्त हुआ है चूँकि ये एक मादा का जीवाश्म था इसलिए इसे लूसी नाम दिया गया किन्तु अब इसे आस्ट्रेलोपिथेकस एफैरेंसिस नाम दिया गया है इसके अधिकांश लक्षण आधुनिक मानव से मिलते जुलते हैं


5. प्रागैतिहासिक मानव --- आस्ट्रेलोपिथेकस एफैरेंसिस से आधुनिक मानव जाति के वंशानुक्रम में मानव की अनेक जातियां विकसित हुई जो कुछ समय रहकर विलुप्त होती गई इन्हें इसीलिए प्रागैतिहासिक मानव जातियां कहते हैं जो कि निम्न हैं --

1.होमो हेबिलस -- इस मानव जाति कि उत्त्पत्ति 16 से 18 लाख वर्ष पूर्व प्लीस्टोसीन युग के आरम्भ में हुई इसके जीवाश्म पूर्वी अफ्रीका के ओल्डूवाई गर्ज़ कि चट्टनो में मिले हैं इसके शरीर का कद 1.2 से 1.4 मीटर था और भार 40 से 50 किग्रा इसकी कपाल गुहा का आयतन 700 CC था  यह सर्वाहरी था व दोनों पैरों पे सीधा चलता था यह मानव पत्थरों व हड्डियों को तराश कर हथियार बनाया करता था इसलिए इसे हथियार निर्माता कहा गया

2. होमो हीडलबर्गेंसिस -- आज से 10 लाख वर्ष पूर्व के ये मानव जीवाश्म जर्मनी के हीडलबर्ग स्थान के निकट मिले हैं इनके जबड़े काफी बड़े थे किन्तु दांत आधुनिक मानव के समान थे ये माना जाता है कि यह शाखा कुछ समय विकसित रहकर विलुप्त हो गई

3. होमो इरेक्टस इरेक्टस----यूजीन डुबाय को अफ्रीका के मध्य जावा में प्लीस्टोसीन युग की 17 लाख वर्ष पुरानी चट्टानों में इस मानव के जीवाश्म मिले इसे सीधा खड़े हो कर चलने वाला कपि मानव या जावा मानव भी कहा गया इसका कद 170 सेमी लम्बा व भर 70 किग्रा था, ललाट नीचा व ढलवां था, कपाल गुहा का आयतन 700 से 1110 CC तक था , ये सर्वहारी थे, ये गुफाओं में रहते थे, भोजन बनाने व शिकार को घेर कर मारने के लिए इनके द्वारा आग के उपयोग के प्रमाण मिलते हैं

4. होमो इरेक्टस पेकिंसिस -- चीन के पेकिंग के पास मिले ये जीवाश्म लगभग छह लाख साल पुराने हैं इसके लक्षण जावा मानव के समान थे किन्तु इसका कद उनसे छोटा था लेकिन कपाल गुहा का आयतन 850 से 1300 CC था ये स्फटिक से बनाये नुकीले हथियार काम में लिया करते थे व समूह बना कर गुफाओ में रहते थे

5. होमो इरेक्टस मोरीटेनिकस( टर्नीफायर मानव ) ---अफ्रीका के टर्नी फायर स्थान से मिले जीवाश्म जो काफी हद तक जावा मानव से मिलते है

6. होमो सेपियंस ( आधुनिक मानव ) --- इस मानव की विभिन्न प्रजातियों का स्वतंत्र विकास हुआ अथवा इसके सदस्य विकसित होकर संसार भर में फ़ैल गये इसकी प्रजातियाँ निम्न है ----------

1. होमो सेपियंस निएनडरथेलसिस (निएनडरथल मानव )--- यह प्रजाति 1.5 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में विकसित होकर यूरोप व एशिया में फैली और लगभग 35000 वर्ष पूर्व विलुप्त हो गई इसके प्रथम जीवाश्म जर्मनी की निएनडर घाटी में मिले और बाद में विभिन्न देशों में पाए गये इसकी कपाल गुहा का आयतन 1350 से 1700 cc था, मस्तिष्क में वाणी के केंद्र विकसित हो गये थे, इनमे श्रम विभाजन के आधार पर सामाजिक जीवन धर्म व संस्कृति की स्थापना की, ये समूहों में शिकार करते थे, चकमक पत्थरों से हथियार बनाते थे, जानवरों की खाल के वस्त्र पहनते थे, रहने के लिए झोपडिया बनाते थे व मुर्दों को विधिवत दफनाते थे

2. होमो सेपियंस फोसिलिस ( क्रो- मेग्नोन मानव )----लगभग एक लाख वर्ष के सफल अस्तित्व के बाद निएनडरथल मानव का विलोप होने लगा व एक नई मानव प्रजाति का विकास आरम्भ हुआ जिसे होमो सेपियंस फोसिलिस नाम दिया गया इसके जीवाश्म फ़्रांस में क्रो मैगनन की चट्टानों से प्राप्त हुए इसलिए इसे क्रो-मेग्नोन मानव भी कहा गया इस मानव का कद 180 सेमी था, सीधी भंगिमा, ललाट चौड़ा, नाक संकरी, जबड़े मजबूत, ठोड़ी विकसित व कपाल गुहा का आयतन 1600 cc था ये तेज़ चल व दौड़ सकते थे, परिवार बनाकर रहते थे, अधिक सभ्य एवं बुद्धिमान थे, सुन्दर हथियार ही नही वरन सुन्दर आभूषण भी बनाते थे, पत्थरों पे गोद कर कला कृतिया बनाया करते थे, पशुपालन में कुत्ते पाला करते थे व मुर्दों को नियमित धर्म क्रियाओ के साथ गाढ़ते थे

3. होमो सेपियंस सेपियंस ( वर्तमान मानव )----- क्रो- मेग्नोन मानव के बाद के विकसित मानव में सांस्कृतिक विकास का प्रभुत्व बढ़ा और अपनी बुद्धि का उपयोग कर पशु पालन, भाषा तथा लिखने पढने की क्षमता का विकास किया, जलवायु परिवर्तनों के अनुरूप वस्त्र, बर्तन, घर आदि का उपयोग किया व कृषि और सभ्यता का विकास किया इसे होमो सेपियंस सेपियंस कहा गया इनका विकास आज से 10-11 हजार वर्ष पूर्व एशिया के कैस्पियन सागर के निकट हुआ एवं फिर इसका तीन दिशाओं में देशांतरण हुआ जंहा विविध परिस्थियों के अनुसार इनमे कुछ शारीरिक व व्यावहारिक विभेदीकरण हुए अब इन्हे तीन प्रमुख भौगोलिक प्रजातीय कहा जाता है जो कि निम्न है -----

1.कोकेसोइड --- पश्चिमी दिशा में भूमध्य सागर के किनारे किनारे फैलकर ये यूरोप, दक्षिणी पश्चिमी एशिया, भारतीय उप महाद्वीप, अरेबिया तथा उत्तरी अफ्रीका की वर्तमान गौरी प्रजाति में विकसित हुए आज संसार की लगभग एक तिहाई जनसँख्या कोकेसयाड्स की ही है इनका रंग गौरा, नाक पतली उठी हुई, माथा ऊँचा, ठोड़ी सुविकसित, होठ पतले व बाल चपटे या लहरदार होते हैं

2. नीग्रोइड --- दक्षिणी दिशा में जाने वाले सदस्य भारतीय सागर के दोनों और फैलकर अफ्रीका एवं मिलैनेशिया की काली नीग्रो प्रजाति में विकसित हुए आज संसार की 16 से 20 % जनसँख्या नीग्रोइड्स की है इनका रंग गहरा काला, बाल घुंघराले काले, माथा गोल उभरा हुआ, नाक चौड़ी व चपटी, ठोड़ी ढलवां तथा होठ मोटे व बाहर की ओर निकले हुए होते हैं

3. मोंगोलोइड----उत्तर व पूरब दिशाओ की ओर जाने वाले सदस्य साइबेरिया, चीन, तिब्बत, में बस कर मोंगोलोइड प्रजाति में विकसित हुए संसार की लगभग आधी जनसँख्या इसी प्रजाति की है इनका रंग गोरा पीला, बाल सीधे, आँखे छोटी व तिरछी, चेहरा चपता, कद छोटा, व सिर चोडा होता है होमो सेपियंस सेपियंस के उत्त्पत्ति काल को पाषाण काल कहते हैं, फिर इस ने कांस्य काल में प्रवेश किया और अब लौह काल चल रहा है