Thursday 13 July 2017

कल्पनाओं की श्रेष्ठता की लड़ाई

दुनिया में छोटे बड़े लगभग 4200 भिन्न भिन्न धर्म/संप्रदाय हैं। जिनमे ईसाई, इस्लाम, हिन्दू, बौद्ध इत्यादि कुछ प्रमुख धर्म हैं। इन प्रमुख धर्मों में भी कई तरह के मत प्रचलन में हैं जो की समय के साथ अस्तित्व में आये हैं। इनमें सभी की अपनी अपनी मान्यताएं, आस्थाएं और धार्मिक रीती रिवाज हैं। सभी अपने मत को एकमात्र सत्य और अन्य सभी मतों को गलत बताते हैं। इन सभी मतों में आपसी विवादों का एक लम्बा इतिहास रह चुका है जिसमे कि कई हिंसक संघर्ष भी शामिल हैं। इस्लाम ‘जो सभी धर्मों से अपेक्षाकृत नया है’ भी मुहम्मद साहब के इंतकाल के बाद ही दो मतों में विभाजित हो गया और उसके बाद इसमें भी समय के साथ कई भिन्न भिन्न मत प्रचलन में आ चुके हैं। जाहिर सी बात है इनमें से सभी मत अपने मत को ही सही और बाकी सभी मतों को गलत बताते हैं। इन मतों के बीच आपस में ही इतिहास में कई खूनी जंग हो चुकी हैं और वर्तमान में भी ये जंग जारी है। इन मतों में से कुछ की विचारधारा अन्य मतों और धर्मों के लिए बेहद आक्रामक है, जिसकी चरम परिणिति इस्लामिक आतंकवाद के रूप में सामने आती है। इसके लिए वैसे काफी हद तक वैश्विक राजनीती भी जिम्मेदार है। कई देश अपरोक्ष रूप से इस विचारधारा को संरक्षण और पोषण देते हैं और इनकी आक्रामक विचारधारा को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आतंकवाद से इतर भी इन मतों की विचारधारा सहस्तित्व को न केवल मुश्किल बनाती है बल्कि अपने अनुयायी को उस मुकाम तक पहुंचा देती है जहाँ से उसको हिंसक संघर्ष के लिए बहकाना बहुत आसान हो जाता है।
हालांकि सभी धर्म और मत अपने ही एकमात्र सत्य होने का दावा करते हैं लेकिन दुनिया में इतने सारे धर्मों और मतों की उपस्थिति और इनके आपसी विवादों से एक बात तो साफ़ हो जाती है कि इनमें से कोई भी धर्म और मत सत्य पर आधारित नहीं है। क्योंकि इनमें से यदि कोई भी धर्म वास्तव में सत्य पर आधारित होता तो वह कभी भी मतों में विभक्त नहीं होता बल्कि अन्य धर्म भी धीरे धीरे उसमें विलीन हो जाते। सत्य के सामने होते हुए भला असत्य कहाँ टिकता....? लेकिन दुनिया में समय समय पर न केवल अनेक धर्म अस्तित्व में आये बल्कि वो धर्म भी विभिन्न मतों में विभक्त होते चले गए और सैकड़ों साल के विवाद के बाद भी आज तक उनमें सत्य असत्य का निर्णय नहीं हो पाया। सत्य की उपस्थिति में असत्य कैसे समाप्त हो जाता है एक उदाहरण से समझें: नासा के अपोलो मिशन से पहले तक लोगों में चंद्रमा को लेकर तरह तरह की मान्यताएं प्रचलन में थीं। इनमें से कुछ का मानना था कि चन्द्रमा पर भी पृथ्वी की तरह जीवन मौजूद है। चूँकि तब तक चंद्रमा पर कोई गया नहीं था इसलिए इन मान्यताओं को चुनौती भी नहीं दी जा सकती थी। लेकिन अपोलो मिशन ने ये प्रमाणित कर दिया था कि चंद्रमा एकदम निर्जन स्थान है। उसके बाद ये सारी मान्यताएं स्वतः समाप्त हो गयीं।
इस सब से ये बिल्कुल साफ़ हो जाता है कि विभिन्न धर्मों, इनके मतों और इनके मतभेदों का कोई वास्तविक आधार नहीं है बल्कि ये सभी केवल और केवल मानव की कल्पनाओं की उपज हैं। मतभेद यदि किन्हीं वास्तविक चीजों आधारित पर हों तो उनको सुलझाया जा सकता है। लेकिन काल्पनिक चीजों को लेकर पाले हुए मतभेदों का निपटारा अनंत काल तक नहीं हो सकता। दो लोग जिनके पास अपनी धार्मिक मान्यताओं की सत्यता का कोई प्रामाणिक आधार न हो अनंत काल तक बहस करने के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते। और जब बातों से मामला न सुलझे तो फिर एक ही रास्ता बचता है कि किसके डंडे में कितना जोर है।
जब तक लोग आस्थाओं, मान्यताओं और सत्य के फर्क को नहीं समझेंगे तब तक लोग अपने मत को एकमात्र सत्य साबित करने के लिए यूं ही धरती को रक्तरंजित करते रहेंगे।