कुरान को खुदा की किताब और मुहम्मद साहब को अंतिम पैगम्बर मानने वाले अति आस्तिक मुस्लिमों के चेहरे की रंगत तब देखते ही बनती है जब कोई गोरा (western guy) इस्लाम की तारीफ़ करता है। और अगर कहीं वो कुरान या हदीस की किसी बात को विज्ञान की किसी खोज से जोड़ दे तब तो सुभानअल्लाह।
आपने ऐसी पोस्ट अक्सर फेसबुक पर देखीं होंगी जिसमे ये दावा किया जाता है की विज्ञान की अमुक खोज के बारे में कुरान में पहले से दिया हुआ है। अक्सर इस्लाम में दावा करने वाले मौलवी और ओलेमा इसका दावा करते देखे जाते हैं की विज्ञान ने जिस चीज को अब खोजा उसके बारे में कुरान ने 1400 साल पहले बता दिया था। जैसे: बिग बैंग थ्योरी, सूर्य का घूर्णन, जीवन का उद्भव, गर्भ में बच्चे का बनना, चन्द्रमा का सूर्य की रोशनी से प्रकाशित होना और भी जाने क्या-क्या।
मशहूर इस्लामिक वक्ता और अब तड़ीपार मियां जाकिर नाइक अक्सर अपने वक्तव्यों में बढ़ चढ़कर इसका जिक्र करते पाए जाते हैं और इस्लाम को सबसे साइंटिफिक धर्म बताते हैं।
इससे पहले कि हम कुरान के वैज्ञानिक दावों की पड़ताल करें, ये जान लीजिये की ये वैज्ञानिक दावे किसने, कब और कैसे खोजे।
कुरान के अधिकांश वैज्ञानिक दावे उस समय प्रकाश में आये जब 1976 में एक फ्रांसिसी मेडिकल सर्जन डॉ. मोराईस बुकाय द्वारा लिखी एक किताब “The Quran and Science” प्रकशित हुई जिसमे कुरान की आयातों में छुपी विज्ञान की बहुत सी खोजों का जिक्र किया गया था। और जैसा की होना ही विज्ञान के बढ़ते क़दमों से इस्लाम के भविष्य को लेकर चिंतित मोलवियों ने इस किताब को हाथों हाथ लिया। जल्दी ही ये किताब उनके वक्तव्यों में किये जाने वाले वैज्ञानिक दावों का मुख्य स्रोत बनने के साथ-साथ नए मोलवियों को प्रशिक्षण के दौरान पढाई जाने वाली किताबों में से एक जरूरी किताब बन गयी। चूँकि ये किताब किसी गोरे ने लिखी थी जो की मुस्लिम भी नहीं था इसलिए आम जनता को समझाना भी बड़ा आसन हो गया। क्योंकि एक आम अवधारणा है ‘जो पता नहीं कैसे बनी’ कि कोई गोरा किसी बात का दावा करे तो हम उस दावे पर सहज विश्वास कर लेते हैं। इसलिए मुल्लाओं ने इस किताब को बहुत सराहा। सभी इस्लामी देशों ने इस किताब का अपनी-अपनी भाषा में अनुवाद करवाया।
हालाँकि डॉ. बुकाय के ये दावे कितने वैज्ञानिक हैं इसका पता किताब को पढने के बाद चल जाता है। अगर आप जरा सी भी वैज्ञानिक अथवा तर्कपूर्ण समझ भी रखते हैं तो किताब में डॉ. बुकैल्ल के दावों का घुमावदार तर्क और कुरान में से अपने मतलब की लाइनों का चयन सहज ही पकड़ सकते हैं। मगर दुर्भाग्य ये है की विश्व की अधिकांश जनसँख्या पर्याप्त सामान्य समझ भी नहीं रखती वैज्ञानिक समझ तो दूर की बात है। इसीलिए जाकिर नाइक और उसके जैसे अन्य मोलवियों का काम आसान हो जाता है। लेकिन एक बात और है जो की शक पैदा करती है की फ्रांस में रहने वाले एक मेडिकल सर्जन को कुरान में विज्ञान ढूंढने की क्या जरूरत पड़ गयी थी??....तो आइये जरा इसकी पड़ताल करते हैं।
असल में डॉ. बुकाय सऊदी अरब के तत्कालीन सम्राट किंग फैज़ल के फैमिली फिजिशियन भी थे। डॉ. बुकाय किंग फैज़ल की अकूत संपत्ति और शानो शौकत से बहुत प्रभावित थे, और जाहिर है किंग फैज़ल उनके सबसे ख़ास कस्टमर्स में से एक थे, और कस्टमर भी ऐसा जिसे की कोई खोना नहीं चाहेगा। तो डॉ. बुकाय ने किंग फैज़ल से नजदीकियां बढानी शुरू कीं, बातचीत का सिलसिला बढ़ा तो किंग फैज़ल ने डॉक्टर साहब का परिचय इस्लाम और कुरान से कराया। यहीं से डॉ. बुकाय के दिमाग में किंग फैज़ल का खासमखास बनने और साथ ही पेट्रो डॉलर कमाने का एक दोहरा प्लान दिमाग में कौंध गया, और डॉ. बुकाय ने तुरंत ही अरबी भाषा सीखनी शुरू कर दी। डॉ. बुकैल्ल अच्छी तरह जानते थे की अरब के मालदार शेखों कोई बात अन्दर तक गुदगुदा सकती थी तो वो ये की एक गोरा काफ़िर कुरान की तारीफ करे। उन्होंने यही किया, क्योंकि ये जिन्दगी भर एक डॉक्टर की जॉब करके गुजार देने से कहीं बेहतर था, क्योंकि इसमें ढेर सारा पैसा कमाने का मौका तो था ही साथ ही अरब के रईस शेखों की हमदर्दी और पूरे मुस्लिम जगत की दुआएं भी शामिल थी।
अगर आप डॉ. बुकाय की किताब पढ़ें तो इसमें डॉक्टर साहब ने इस्लाम की तारीफों के पुल बाँध दिए हैं जैसे की डॉक्टर साहब को पूरा विश्वास हो कि दुनिया में यही एकमात्र सच्चा और वैज्ञानिक धर्म है। तो जब कोई किसी धर्म से इतना प्रभावित हो जो जाहिर सी बात है वो उसे अपना लेगा।
तो क्या डॉ. बुकाय ने इस्लाम अपनाया??
नहीं............डॉ. साहब इतने मूर्ख नहीं थे। वो अच्छी तरह जानते थे की अगर वो इस्लाम अपना लें तो और बहुत सारा माल बटोर सकते हैं पर ज्यादा लालच ठीक नहीं, चूँकि उन्होंने कुरान पढ़ा था, तो वो जानते थे की इस्लाम में केवल दाखिल होने का रास्ता है निकलने का नहीं। इस्लाम छोड़ने की सजा मौत है। इसलिए उन्होंने बस अपना उल्लू सीधा किया माल बटोरा और सीधे घर की रास्ता पकड़ी।
इसी तरह एक और डॉक्टर थे “डॉ. कैथ मूरे” जो की टोरंटो यूनिवर्सिटी में एनाटोमी एंड सेल बायोलॉजी विभाग के प्रेसिडेंट थे। जब उन्हें सऊदी अरब से किंग अब्दुल अज़ीज़ यूनिवर्सिटी से एक बड़े पद पर काम करने के ऑफर आई तो उनके नथुनों ने पेट्रो डॉलर की भीनी सुगंध को महसूस किया, और कुछ दिन बाद ही वो किंग अब्दुल अजीज यूनिवर्सिटी की एम्ब्र्योलोजी कमिटी में काम कर रहे थे। उनको यूनिवर्सिटी में जो काम दिया गया वो भी बड़ा मजेदार था, उनको कुरान और सुन्नाह में से उन पंक्तियों की खोज करनी थी जो मानव जन्म, शरीर-रचना और विकास से सम्बंधित हों। लेकिन यहाँ एक बात जो समझ नहीं आती वो ये की अरब के लोगों को इस काम के लिए एक विदेशी काफ़िर की क्या जरूरत पड़ गई, जबकि उनके अपने देश में उनके बहुत से मुस्लिम भाई इस क्षेत्र में अच्छे विशेषज्ञ होने के साथ-साथ कुरान और अरबी भाषा के अच्छे जानकार भी थे? क्या उनको अपने मुस्लिम भाइयों की प्रतिभा पर शक था?
जो लोग अरब देशों में काम करते हैं वो ये जानते होंगे की वहां एक किस्म का रंग-भेद चलता है जो कि गोरे लोगों को काले लोगों से बेहतर मानता है। गोरे लोगों का वेतन और सुविधाएँ काले लोगों की अपेक्षा सामान्यत: ज्यादा होती हैं, और उनकी कही हुई बात को भी ज्यादा तहरीज दी जाती है। एक काले व्यक्ति द्वारा ‘फिर चाहे वो कितना ही काबिल हो’ दिया गया बयान इतना महत्त्व नहीं रखता, जबकि कोई सामान्य योग्यता का गोरा व्यक्ति यदि कोई बात कहता है तो वो उनके लिए बहुत मायने रखती है। गोरे लोग इस बात को बखूबी समझते हैं और इसका जमकर फायदा उठाते हैं। अब जरा देखिये डॉ. मूरे ने अपने अन्नदाताओं को कैसे खुश किया। काहिरा में हुई कांफ्रेस में उन्होंने एक रिसर्च पेपर पढ़ा जिसमे उन्होंने कहा,
“ये मेरे लिए बड़ी ख़ुशी की बात है की मुझे कुरान में मनुष्य के जन्म और विकास सम्बंधित जानकारी तलाशने का मौका मिला। और अब ये मुझको बिल्कुल साफ़ हो गया है की ये जानकारी मुहम्मद साहब के पास केवल ईश्वर से ही आ सकती है क्योंकि जो जानकारी मुझे कुरान में मिली वो बीती हुयी कुछ एक शताब्दियों के दौरान ही खोजी गयी है। इससे मुझे ये प्रमाणित हो गया है की मुहम्मद ईश्वर के भेजे हुए दूत थे।“
वाह!! कमाल कर दिया! एक काफ़िर के मुहँ से मुल्लाओं को खुश करने के लिए इससे बेहतर और क्या बयान हो सकता था। लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है की उसने पूरे रिसर्च पेपर में कहीं ये नहीं कहा की कुरान में जो बातें लिखी हैं वो वैज्ञानिक हैं। उसने जो भी कहा वो अपनी व्यक्तिगत अनुभूति पर कहा जबकि वैज्ञानिक आंकड़े व्यक्तिगत अनुभूति पर नहीं बल्कि सार्वभौमिक अनुभूति पर आधारित होते हैं। तो उसने केवल वो कहा जो कि मुल्ला सुनना चाहते थे। और कमाल की बात ये रही की इतनी गहरी अनुभूति होने पर भी उसने इस्लाम नहीं अपनाया, उसने बस अपने पैसे लिए और रास्ते भर मुल्लाओं की मूर्खता पर हँसता हुआ अपने घर गया। पश्चिम में एक कहावत है कि हर मिनट में एक बुद्धू पैदा होता है। जब तक इस्लाम मुल्लाओं के चंगुल में है इस धरती पर ऐसे बुद्धू भारी तादात में पैदा होते रहेंगे जिनको की पश्चिम के लोगों द्वारा लूटा जाता रहेगा।
आप यदि ऐसे गोरों की लिस्ट बनायें जिन्होंने कभी भी इस्लाम की तारीफ़ में कुछ कहा है तो आप पायेंगे की उन्होंने कभी न कभी या तो अरब में काम किया है या उनको अरबों द्वारा एक भारी-भरकम बजट के साथ इस्लाम पर रिसर्च करने के लिए नियुक्त किया गया होता है। इस तरह का रिसर्च सऊदी अरब में आम है जिसमे की विदेशियों को ‘विशेष तौर पर गोरों को’ एक भारीभरकम बजट के साथ कुरान, हदीस तथा इस्लामिक मान्यताओं और परम्पराओं पर रिसर्च करने के लिए नियुक्त किया जाता है, जिसका उद्देश्य केवल इनकी वैज्ञानिकता और प्रमाणिकता को सिद्ध करना होता है। अब इस तरह की रिसर्चों में कितनी निष्पक्षता बरती जाती होगी ये तो आप समझ ही सकते हैं। इस तरह की रिसर्चों का परिणाम पहले से ही तय होता है और पूरी रिसर्च ये ध्यान में रख के करी जाती है की रिसर्च से पूर्व जो परिणाम तय किये हैं वही आयें। कमाल की बात ये है की इन रिसर्च आंकड़ों की विरले ही कभी कोई जांच किसी थर्ड पार्टी से करायी जाती है और करायी भी जाती है तो ये जांच भी कितनी निष्पक्ष होती होगी ये कहा नहीं जा सकता। बाद में किसी भव्य आयोजन के द्वारा रिसर्च के परिणामों की घोषणा की जाती है और फिर सऊदी अरब के विश्व भर में तैयार किये गए मुल्ला नेटवर्क द्वारा इसको जन-जन तक पहुंचा दिया जाता है।
कभी-कभी ऐसा भी होता है जब इसी तरह की रिसर्च पश्चिम की किसी गुमनाम यूनिवर्सिटी द्वारा की जाती है, ऐसी ही एक रिसर्च जो मैंने पढ़ी थी जो की जर्मनी की किसी यूनिवर्सिटी में की गयी थी जिसका उद्देश था की पशुओं को मांस के लिए क़त्ल करने का कौन सा तरीका बेहतर है “हलाल या स्टनिंग”। किस तरीके से पशु को कम दर्द महसूस होता है। पशु को होने वाले दर्द को मापने के लिए उन्होंने ECG मशीन का प्रयोग किया था। अब ये तो बताने की जरूरत नहीं है की रिसर्च का परिणाम क्या रहा होगा। अगर कोई निष्पक्ष रिसर्चर इस रिसर्च को पढ़े तो वो इसे रद्दी की टोकरी में फेंकने में देर नहीं लगाएगा। क्योंकि इसमें रिसर्च के सभी मानकों का उल्लंघन किया गया है। रिसर्च का लक्ष्य स्पष्ट समझ आता है कि इसको हलाल तरीके को बेहतर साबित करने के उद्देश से ही अंजाम दिया गया है ताकि इस पारंपरिक इस्लामिक तरीके पर वैज्ञानिकता का ठप्पा लगाया जा सके।
पश्चिमी रिसर्चर बड़े चालाक होते हैं वो जानते हैं की मुल्लाओं को क्या परिणाम चाहिए, इसलिए वो रिसर्च को उल्टा करके शुरू करते हैं। पहले ये तय किया जाता है की इस रिसर्च से हमें क्या परिणाम चाहिए, फिर पूरी रिसर्च का आयोजन इस तरह से किया जाता है की अपेक्षित परिणाम प्राप्त हो जायें। इस तरह के रिसर्च आयोजन आर्थिक बदहाली से जूझ रही पश्चिम की नयी यूनिवर्सिटीयों के लिए जीवन दान का काम करते हैं। नए मुल्लाओं को लगता है की इस तरह की रिसर्च करवा के उन्होंने कोई बहुत बड़ी उपलब्धि हांसिल कर ली है, मानो उन्होंने तेल के पैसे के दम पर विज्ञान को खरीद लिया है। जबकि हकीकत ये है की इस तरह के रिसर्च आयोजनों से केवल चालक पश्चिमी रिसर्चरों का ही भला होता है जबकि विश्व भर में फैले मुस्लिमों की एक बड़ी संख्या भ्रम का शिकार होती है, जिसका परिणाम उनको और उनकी आने वाली पीढ़ी को भुगतना ही पड़ेगा।
पश्चिम बड़ा चालक है और उसकी चालाकियों को केवल बुद्दिमानी से ही मात दी जा सकती है। लेकिन मुल्लाओं की बुद्धि पर तो कुरान का पर्दा पड़ा है। उनकी दृष्टि सीमित हो गयी है वो कुरान से आगे कुछ और देखने में असमर्थ है। जहाँ पश्चिम पुरानी धार्मिक मान्यताओं को दरकिनार कर विज्ञान के मार्ग पर चल पड़ा है वहीँ मुल्ला लोग कुरआन की आयतों में विज्ञान खोज रहे हैं ताकि अपने धर्म के सर्वश्रेष्ठ होने के अहंकार को संतुष्ट कर सकें और दुनिया भर के मुसलमानों को ये तसल्ली दे सकें की वो सही राह पर हैं।
अन्य धर्मों में भी गाहे-बगाहे ऐसी बातें सुनने को मिलती रहती हैं जहाँ की लोग आज की विज्ञान की खोजों का सम्बन्ध अपने धर्मग्रंथों की मिथकीय कहानियों से जोड़ते हैं। जैसे की हिन्दू पुष्पक विमान का संधर्भ देकर पहला विमान हिंदुओं द्वारा बनाया जाना बताते हैं, गणेश जी का सर काटकर हाथी का सर लगाने को सफल सर्जरी बताते हैं। महाभारत के युद्ध में आण्विक हथियारों का प्रयोग और भी जाने क्या-क्या। हो सकता है भविष्य में इनको भी गोरों से रिसर्च करवा कर प्रमाणित करवाने की कोशिश हो बाकी गौ मूत्र, गोबर और हवन इत्यादि पर तो स्वदेशी रिसर्चर रिसर्च कर ही रहे हैं।
जैसे-जैसे विज्ञान का प्रभाव दुनिया में बढ़ रहा है पुरानी मान्यताएं, परम्पराएं और धर्मग्रंथों में लिखी बातें और मिथकीय कहानियां न केवल संदेह के घेरे में आ रही हैं बल्कि अपनी प्रसंगिकता भी खोती जा रही हैं और प्रबुद्ध समाज द्वारा इनको संदेह से देखा जा रहा है। लेकिन धर्म के ठेकेदारों को ये बिल्कुल भी गंवारा नहीं की कोई भी उनके सदियों पुराने स्थापित धर्म पर जरा भी संदेह करे और अपने धर्म को सही, सच्चा और वैज्ञानिक सिद्ध करने के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। उनकी ये कोशिश सिर्फ धर्म रुपी बाड़े को मजबूती देने की है ताकि कोई इस बाड़े की सीमा को तोड़ कर आजाद ना होने पाए। पश्चिम उनकी इस हालत को बखूबी समझता है और इसका जमकर फायदा उठा रहा है।
https://towardsmukti.blogspot.com/
ReplyDeletesatya ka prachar
ReplyDeleteHari Maurya
हम आपको कुरान के विज्ञान अर्थात अल्लाह के अज्ञान के नमूने दे रहे हैं : -
१) - सूरज दलदल में ड़ूब जाता है.
"यहाँ तक कि वह सूर्यास्त की जगह पहुँच गया, उसने देखा कि सूरज एक काले कीचड़ (muddy spring ) में ड़ूब रहा था. सूरा .अल कहफ़ 18 :86
२) - अल्लाह ने प्रथ्वी को ठहरा रखा है.
"वह कौन है ,जिसने प्रथ्वी को एक स्थान पर ठहरा दिया है. (made the earth fixed ) सूरा - अन
नमल 27 :61
३) - धरती झूलती रहती है. "वही है जिसने तुम्हारे लिए धरती को पालना बनाया (restling झूला) सूरा - अज जुखुरुफ़ 43 :10
४) - धरती फैलायी जा सकती है
.
"औरधरती को जैसा चाहा फैलाया (spread the earth ) सूर -अस शम्श 91 :6
५) रात और दिन लपेटे जा सकते है.
"और वह रात को दिन पर लपेटता है एवं दिन को रात पर लपेटता है. सूरा -
अज जुमुर 39 :5
६) - सूरज अल्लाह से निकलने की आज्ञा लेता है.
"सूरज रात को गंदे कीचड़ में डूबा रहता है, और अजान से पहले अल्लाह से निकलने की अनुमति लेता है.सही बुखारी - जिल्द 4 किताब 54 हदीस 441
अब हम कैसे मानें कि कुरान में विज्ञान होगा, जब अल्लाह को स्वयं ही प्राथमिक ज्ञान नहीं है. मुसलमानों के कट्टर होने का यही कारण है. यदि वह कुरान की बातों की जाँच कर लेते तो तुरंत
इस को फ़ेंक देते.
वैज्ञानिकता और धार्मिकता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं दोनों को एक करने के लिए झूठ का सहारा लेना मूर्खतापूर्ण है।
ReplyDelete