Tuesday 18 September 2018

बुद्धत्व vs चूतियत्व

मानव जीवन के दो ऐसे छोर हैं जहां पहुंचकर व्यक्ति सभी दुखों से मुक्त होकर परम शांति, परम आनंद को उपलब्ध हो सकता है। एक छोर है "बुद्धत्व" और दूसरा "चूतियत्व"
बुद्धत्व वह छोर है जहां व्यक्ति को सारा जीवन प्रपंच समझ आ जाये। उसकी समझ इतनी विकसित हो जाए कि वह जीवन की समस्याओं से आन्तरिक तौर पर प्रभावित हुए बिना उनके युक्तिपूर्ण हल को खोजकर उनके निवारण समेत अपने समस्त जीवन कर्तव्यों में निष्काम भाव से लगा रहे। वहीं चूतियत्व वह छोर है जहां व्यक्ति सभी जीवन प्रपंचों और समस्याओं से यूँ बेखबर होकर मस्त हो जाए जैसे मानो वो हों ही न।
सरल शब्दों में कहें तो बुद्धत्व जहाँ समझदानी का चरम विकास है वहीं चूतियत्व समझदानी की नसबंदी। यह भारत की पुन्य भूमि का प्रताप ही है कि यहाँ पैदा हुए महापुरुषों ने जीवन के दोनों छोरों पर झंडे गाड़े हैं। बुद्धत्व के छोर पर पहुँचने वाले भले ही गिनती के हों लेकिन चूतियत्व के मामले में तो हम सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का नेतृत्व करने की क्षमता रखते हैं। शायद यहाँ की आबो हवा में ही कुछ ऐसे दिव्य तत्व हैं कि यहाँ की लगभग आधे से अधिक जनसँख्या बिना किसी विशेष प्रयास के सहज ही चूतियत्व को उपलब्ध है।
मतलब आधी से अधिक जनसँख्या ऐसी खुमारी में जी रही है जो ठन्डे पानी की बाल्टियाँ उड़ेलने से भी नहीं जाती। वे वास्तविक समस्याओं को नजरंदाज कर ऐसी उठापटक में व्यस्त रहते हैं जिससे उनके और उनकी आगामी पीढ़ियों के जीवन में कोई सकारात्मक बदलाव आने की आशा नहीं है। उनको जगाने के सभी प्रयास निष्फल हो चुके हैं। जैसे कोई शराबी नाली में पड़ा लोट रहा हो और जिसका मुहँ श्वान चाट रहे हों, लेकिन वह इस सब से बेखबर अपने स्वप्नलोक में अप्सराओं का चुम्बन कर रहा हो। हालाँकि शराबी का नशा उतरने के बाद उसे होश आ जाता है और वह जो हुआ उस पर लज्जित भी होता है। लेकिन चूतियत्व को उपलब्ध व्यक्ति के जीवन में यह क्षण कभी नहीं आता। क्योंकि उसका तो पूरा जीवन ही खुमारी में बीत जाता है।
बाहर से सैलानी जब भारत भ्रमण पर आते हैं तो वह बात जो उन्हें सबसे ज्यादा आश्चर्य से भर देती है वह ये कि ऐसी नारकीय स्थितियों में गुजर बसर करने के बाद भी ये लोग इतने खुश कैसे हैं? वे लोग इसे भारतीय संस्कृति में निहित योग और अध्यात्म का प्रभाव मानते हैं। विदेशी सैलानी ऐसा समझते हैं कि योग और अध्यात्म के प्रभाव से यहाँ के लोग करीब करीब बुद्धत्व को उपलब्ध हो चुके हैं। यही कारण है कि ये लोग इतनी चरम स्थितियों में रहने के बावजूद इतने प्रसन्न हैं। और ऐसा समझ वे बेचारे भी किसी गुरु की खोज में निकल जाते हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार, काशी और न जाने कहाँ कहाँ भटकते फिरते हैं। जबकि वे नहीं जानते कि जन्हें वे बुद्धत्व को उपलब्ध समझ रहे हैं वे असल में चूतियत्वधारी हैं।

4 comments:

  1. ■ क्या है #बुद्धतत्व 【इस पर मेरा सामान्य अनुभव】 ■

    हमारा अपने आप से इतना #गहरा_संबंध स्थापित हो जाए कि हम अपने #स्वभाव को समझ सके। कि हमारा स्वभाव क्या है, हम अपने प्रत्येक कृत्य के प्रति कितने जागरूक है। अपने स्वयं के ऐसे #मालिक बन सके जहा मालिक होकर भी मालिक न हो। जहा ऐसी कला निर्मित हो जाये कि स्वभाव हमे चला रहा है या हम स्वभाव को चला रहे है। जहा स्वाभाव का सहज चलना और उसे चलाना दोनों का आपसी सामंजस्य हो जो सहज #संतुलन में हो की कला आ जाये।

    #अस्तित्व में किसी भी चीज का अंत नही है। सब अनंत है। अस्तित्व में ज्ञान का कोई अंत नही है।

    #ज्ञान (#विज्ञान_व_आध्यत्म) किसी भी क्षेत्र में हो लेकिन यदि स्वयं से बेहतर सबंध स्थापित कर ले तो इतना हमे समझ आ जायेगा कि इस अनंत ज्ञान में हमारे स्वभाव के लिए कौन सा ज्ञान आवश्यक हैं जो किसी विषय-वस्तु व समयानुकूल आवश्यक हो। वह पहचानने की कला आ जाए। इतनी सामान्य समझ आ जावे तो मन व शरीर दोनों स्वस्थ रह सके। तब हम सामान्य बुद्धतत्व में ही है।

    जहा हमारा #विवेक (ह्रदय +मस्तिष्क = विवेक) स्वभाव इतना निर्णय लेने की क्षमता ले सके कि शरीर व मन को निर्रथक चीजों को विसर्जित कर दे। ऐसी सफाई हो जाये। जिससे एक स्वस्थ शरीर, स्वस्थ समझ व प्यारा दिल हो परिणामतः हम अपनी यूनिक आई डी(अपने स्वभाव/चैतन्य) का बोध कर ले का द्वार खुले। जिससे खुशहाल/आंनदित, जागरूकता का जीवन जी सके।

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    स्वभाव भी हम create कर सकते है व स्वभाव की हरकत भी बदल सकते है। जो हमारा स्वभाव वर्तमान में है वह बदल सकता है। हम खुद को कुछ भी कर सकते है जी हाँ कुछ भी।
    हमारे अंदर सारी संपत्ति मौजूद है। निर्भर करता है हम अपनी संपत्ति में किस तरफ ध्यान दे रहे है। वही विकसित होगा। जिसमे संपत्ति से आशय है-
    (संपत्ति= प्रेम, प्राथना, ध्यान,काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार विज्ञान-आध्यात्म....etc.)

    यह सब संपत्ति हमारे अंदर मौजूद है, जो कही सोई पड़ी है तो कही जागी पड़ी ह। जो हमारी अवस्था पर निर्भर करता है।
    जो 2 पहलू में ON/off की तरह काम करता है। बटन हमारे में चालू है या नही यह हम पर है। जब कोई हम पर अतिक्रमण, सहजपूर्ण कुछ हम क्रिया करता है तो हो सकता जो सोया हुआ हमारे अंदर उसमे हलचल हो, या जो जागा हुआ दूसरे को जगाने की ओर उसे रास्ता दे उसके अंदर हलचल करने में। इसलिए अस्तित्व में बाहर और अंदर कुछ भी निर्रथक नही है। जहा बाहर/अंदर सब मे #मैं बैठा है। अपना बटन चेक करना होगा कि क्या ऑफ है और क्या ऑन है।

    तब इसमें activate क्या है? इन सब मे एक्टिवेट होने इसकी दिशा का परिणाम तय करेगा कि हम स्वाभाव से जैसा जी रहे है उससे धर्म प्रकट हो रहा है या अधर्म।
    हमारे स्वाभाव से जो प्रकट हो रहा उसका हम पर और हमारे आसपास के लोगो पर क्या फर्क पड़ता है।

    #बुद्धत्व का सही मायने अर्थ है हम स्वयं में आंनदित है या नही कि पहचान, अपने होनेपन मे हो जाना, इतने अधिक जागरूक हो जाना जहा अपने आप के कृत्य का बोध हो। जहा दूसरे माध्यम क फर्क का पड़ना या पड़ना के मालिक हम स्वयं हो।



    दूसरे मायने बुद्धत्त्व की बात करे तो..........................
    विचार, मन, शरीर, अस्तित्व सब हम है। अस्तित्व का मतलब ही यही है जिसमे सब बसा हो। विचार, मन, शरीर यह सभी हमारी ऊर्जा की ही ये लपटें है जो हमसे अलग है ही नही। जिस तल में होंगे उसी तल के हिसाब से लपटे बहेगी। विचार भी , मन भी, आत्म भी, यह सभी हम ही है। हम यह तो कह सकते ही नही की विचार, मन, शरीर से हम अलग है। इसका कारण यह है कि विचार, मन, शरीर भले जिस स्तर में हो पर इन्ही विचारों, से इसी मन से इसी शरीर की सीढ़ियों से हमें सहायता मिली आत्म को जानने समझने में। जो सीढी हम में ही बसी है उस सीढी से अगली सीढी मिली तो पिछली सीढ़ी को अगली सीढी अलग मानना नासमझी है। क्या यह मजाक न होगा कि हम पीएचडी कर ले और पीएचडी को हम स्कूल से शिक्षा से अलग कर दे। क्योकि हमारी हर पिछली कक्षा अगली कक्षा के लिए सहायक है। बस बोध और विकसित की बात है। इसलिए अंततः कह सकते है कि ऊर्जा की लपटें ऊर्जा से थी और वही लपटे हमे इशारा देती है कि लपटे किधर से आ रहीं उसे जान लो। हमारी ऊर्जा की लपटें जब ऊर्जा से परिचय करवा देती तो फिर हम कोई भी ढ़ंग ले सकते है। इसी को सरल भाषा मे #बुद्धत्त्व कह सकते है।

    Sachit awasthi ..✍️✍️✍️✍️

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  2. अति सुन्दर लेख है। सर जी 🙏

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  3. सर एक लड़का मुझसे पूछने लगा कि "हिन्दू धर्म के अनुसार किसी के म्रृत्यु के बाद रात मे जो राख रखी जाती है तो सुबह उठकर देखने पर इंसान जिसका जन्म पाता है उसके पैरों के निशान छप जाते हैं

    मैंने उससे कहा कि तुमने देखा है

    तो उसने कहा कि मेरी दादी की मृत्यु के बाद मैंने देखा था चिड़िया का पैर छपा था

    तो सर प्लीज़ बताएं मैं उसे कैसे समझाऊं

    Sir isi pe ek video banaiye please

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